शराब और शबाब .. कविता: जी आर कवियूर

मैखाने में मिले तो आप से

तुम पे उतरे

जामसे जाम मिले तो तुम से तू में उतरे

पूरी हुवी जब पेखानेसे निकले तो फिर आपे उतरे

क्या समझ में आया ये है शराब

कली खिली महकी मनमोह उठी

चन्द वक्त गुजारी तो मुर्जा गई

और बू उठी यह है शबाब समझ ये जनाब

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